
कल्याण मित्र महेंद्रभाई शेठ
फाउंडर कल्याण मित्र फाउंडेशन
नि:स्वार्थ सेवा समर्पण
सर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः
(लेखक एवं संपादक दिनेश श्रीवास्तव)
इन पंक्तियों को अक्षरश: ग्रहण करते हुए समाजसेवा के रूप में आदर्श स्थापित करने वाले महेंद्रभाई सेठ पिछले अनेक वर्षों से बिना किसी स्वार्थ के पूर्ण निष्ठा के साथ समाजसेवा की ज्योत को प्रज्ज्वलित रखे हुए हैं। बचपन में अपने पितामह की उंगली पकड़कर महेंद्रभाई ने जरूरतमंदों की पीड़ा को करीब से अहसास किया और मन ही मन यह संकल्प ले लिया कि अब वे आजीवन गरीबों, बेसहारा व जरूरतमंदों की सेवा व सहायता सर्वधर्म समभाव की भावना से करेंगे और उनका व्रत अब तक कायम है। महेंद्रभाई की समाजसेवा की इतनी बड़ी दास्तान है कि उसे बताने में शब्द भी कम पड़ जाएंगे। सच कहें तो उसके लिए अलग से एक किताब ही लिखना पड़ेगा। विशेष बात यह है कि महेंद्रभाई सेठ ने जो भी समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य किए, उन कार्यों का श्रेय लेने, उनकी पब्लिसिटी पाने की कभी कोशिश नहीं की। दूसरों के दु:ख को ऐसे अनुभव किया, जैसे अपना खुद का दर्द हो। दूसरों की पीड़ा को स्वपीड़ा समझा। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में कहा भी है ‘जाके पांव न पड़ी बिवाई, सो का जाने पीर पराई।’ समाजसेवा के लिए पहली शर्त महेंद्रभाई यह बताते हैं कि जरूरतमंद की समस्या को पहले अपनी नजर से देखो और उस व्यक्ति की जगह अपने को रखकर देखो। वे कहते हैं वक्त कब किसकी परीक्षा लेगा, यह कोई नहीं जानता। संपन्न को भी विपन्न बनने में देर नहीं लगती तो वहीं विपन्नता भी आगे चलकर संपन्नता में बदल सकती है, अर्थात् राजा से रंक और रंक से राजा भी इनसान बन सकता है। आज समाज में ऐसे हजारों-लाखों लोग इतने बुरे हालात में जीने को विवश हैं कि उन्हें दो वक्त का भोजन भी नसीब नहीं होता। उनके बच्चे अच्छी शिक्षा पाने से वंचित रह जाते हैं। ऐसे लोगों के प्रति दयाभाव की नहीं, बल्कि सहानुभूति व आर्थिक मदद की जरूरत है।
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी
चंद लोग हों या कोई बड़ा हुजूम हो,मन में शांति और दिमाग में सुकून हो।
भीड़ भी आपके इशारों पर नाचेगी दोस्तों,बस कुछ कर गुजरने का ज़ज्बा व जुनून हो।
कहते हैं कि इनसान की सीखने की कोई उम्र नहीं होती और यह बात महेंद्रभाई ने साबित कर दिखाई है। बचपन से पढ़ाई के प्रति लगाव व दुखी व वंचितों के प्रति सहानुभूति का ही परिणाम रहा कि शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने राजनीति शास्त्र व दर्शनशास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की तथा एस्ट्रोलॉजी एवं जर्नलिजम में डिप्लोमा हासिल किया। राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र के साथ ही विभिन्न धर्मग्रंथों का अध्ययन उन्होंने किया और इस तरह इसके साथ क्रीड़ा प्रेमी, साहित्य प्रेमी व धार्मिक वृत्ति के साथ ही विविध आयामों का व्यक्तित्व उन्होंने पाया। मूलत: तीर्थंकर भगवान महावीर की शिक्षाओं व सिद्धांतों की राह पर चलने वाले जैन धर्मी महेंद्रभाई सेठ शुद्ध आहार शाकाहार व अहिंसा परमोधर्म की राह पर अग्रसर हैं। माता श्रीमती भानुमति व पिताश्री स्व. धीरजलालजी सेठ को अपने जीवन का आदर्श व दादाजी स्व.गोकलभाई को अपना प्रेरणास्त्रोत मानने वाले महेंद्रभाई का मानना है कि अपने बच्चों को बचपन से ही अच्छे संस्कार देना चाहिए और उन्हें उच्च शिक्षा दिलानी चाहिए। इसी सोच पर अमल करते हुए उन्होंने खुद अपने बेटे आदित्य व बेटी हिलोनी को बीटेक की शिक्षा दिलाई व एमएम पास ग्रीष्मा को अपनी जीवन संगिनी बनाया। उनके पितामह स्व. गोकलभाई सेठ फ्रीडम फाइटर थे और ब्रिटिश हुकुमत ने उन्हें ‘नगरसेठ’ की उपाधि से विभूषित किया था। दादाजी की देशभक्ति व समाजसेवा के गुणों को ग्रहण करते हुए राष्ट्रहित व जनहित में महेंद्रभाई ने अनेक कार्य किए, जिनकी सूची काफी लम्बी है। हिंदी, मराठी, गुजराती, संस्कृत व अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान रखने वाले मृदुभाषी, शालीन व संयमी, दूरदर्शी व अपने हर व्यवहार में पारदर्शिता रखने वाले महेंद्र सेठ दानशील प्रवृत्ति व जीवों के प्रति हमेशा दयाभाव रखने वाले ऐसी शख्सियत हैं, जिन्हें बस उनके करीबी लोग ही जानते हैं। अपने जीवन में किसी भी जरूरतमंद की मदद या सेवा करते वक्त वे निस्वार्थ भाव से अपना कार्य करते हैं। झूठ बोलने वाले, द्वेष भावना रखने वाले, चापलूसी करने वाले लोग उन्हें पसंद नहीं हैं। वे इस प्रवृत्ति के लोगों को पहली ही बातचीत या यूं कहें पहली नजर में पहचान लेते हैं। इस काम में उनकी साइक्लोजी की स्टडी मदद करती है तो वहीं इमानदार, वफादार, कर्त्तव्यनिष्ठ व निष्कपट रखने वाले लोगों से ही वे संबंध और रिश्ते मजबूत रखते हैं। ऐसी अनेक खूबियों के धनी महेंद्र सेठ अपनी खुद की बनाई विरली राह पर अग्रसर हैं।
लक्ष्मी के साथ सरस्वती की भी कृपा
बिना मेहनत के कुछ हासिल नहीं होता, बिना ज्ञान के कोई काबिल नहीं होता।
वक्त आने पर साथ छोड़ देता है साया, मंझधार में फंसने पर कोई साहिल नहीं होता।
कहतें हैं जिन पर लक्ष्मीजी की कृपा बरसती है, वहां सरस्वतीजी साथ दिखाई नहीं देतीं, लेकिन बहुत कम ऐसे भी अपवाद पाए जाते हैं, जहां धन की देवी माता लक्ष्मी और विद्या अर्थात् ज्ञान की देवी माता सरस्वती की कृपा एक साथ नजर आती है। ऐसे ही एक उदाहरण हैं महेंद्रभाई सेठ। सेठ परिवार का इतिहास या कहें उनकी संघर्ष की गाथा भी बड़ी दिलचस्प है। यह समझ लीजिए किसी ने महज 10 रुपयों का लॉटरी टिकट खरीदा और उसे जैकपाट लग गया हो। सेठ परिवार के अग्रज व मुखिया स्व. गोकलभाई मूल रूप से गुजरात, जामनगर के निवासी थे। देश की आजादी के पूर्व सन् 1902 में वे अपने परिवार के साथ मध्यप्रदेश के बैतूल जिले की मुलताई तहसील में व्यापार की दृष्टि से आए और फिर यहीं रचने-बसने का संकल्प लिया। मजेदार व हैरानी की बात यह थी कि उनके पास उस वक्त महज 10 रुपयों की पूंजी थी। हिम्मत व हौसला देखिए कि उन्होंने 10 रुपयों की पूंजी से अपना काम शुरू किया। वे एक कुशल वैद्य थे अत: यही काम करना उन्हें रास आया। उनकी लगन व सेवाभाव ने ऐसा प्रभाव डाला कि उनका यह काम फलीभूत हुआ और फिर काम बढ़ते ही गया। अपनी व्यापारिक और प्रखर बुद्धि का उपयोग करते हुए उन्होंने धीरे-धीरे विभिन्न कम्पनियों की डिस्ट्रीब्युटरशिप ली और करीब 45 कम्पनियों की इस डिस्ट्रीब्युटरशिप की बदौलत एक साम्राज्य ही स्थापित कर लिया। मकान, दुकान, वाहन, नौकर जैसी हर सुख-सुविधाएं हासिल करके उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया कि अगर हौसले बुलंद हों तो सब कुछ हासिल किया जा सकता है। यह सब देख भला उनके नाती अर्थात् महेंद्रभाई भला कैसे शांत बैठते? उनके मन में तो पढ़ाई के साथ ही समाजसेवा की धुन थी। दादाजी ने महेंद्रभाई की प्राथमिक स्कूल में 11 रुपये डोनेशन के रूप में दिए तो उसके बाद उन्हें आगे की फीस नहीं भरना पड़ी। तीक्ष्ण बुद्धि व प्रतिभाशाली महेंद्रभाई की यह विशेषता रही कि वे हमेशा मेरिट में उत्तीर्ण हुए। हर माह मिलने वाली स्कॉलरशिप की राशि 35 हजार रुपये उनके नाम से जमा हो गई, जो कि सेठ परिवार के लिए शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। जिस वक्त महेंद्रभाई कक्षा 8वीं अर्थात् करीब 14 साल के थे, तो वे अपने दादाजी व पिताजी के साथ दुकान पर बैठने लगे और धीरे-धीरे व्यापार की खूबियां सीखीं। न केवल व्यापार बल्कि समाजसेवा के प्रति झुकाव बचपन से हुआ और आगे चलकर यह उनके जीवन का एक मिशन ही बन गया। महेंद्रभाई का कहना है कि
‘समाजसेवा से मिलता है सच्चा सुकून,
बस दिल में चाहिए संकल्प व जुनून।
14 साल की उम्र में अनोखा काम
‘जिंदा हो तो जिंदा दिल रहो, उदास चेहरे अच्छे नहीं लगते।
फूल पौधों पर ही दिखते हैं सुंदर, मुरझाने पर वे दोबारा नहीं खिलते।’
कहावत है पूत के पांव पालने में ही नजर आ जाते हैं और यह कहावत महेंद्रभाई पर पूरी तरह सटीक बैठती है। मात्र 14 वर्ष की उम्र में, जब वे कक्षा 8वीं में पढ़ते थे, तब बालक महेंद्र ने देखा कि कई ऐसे भी बच्चे हैं, जिनके परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हैं और उनके पास पुस्तकें खरीदने तक के लिए पैसे भी नहीं हैं। उन्होंने ऐसे अभावग्रस्त व जरूरतमंद 13 छात्रों को पढ़ने व पढ़ाने का बीड़ा उठाया। इन बच्चों को खुद पढ़ाते और उन सबको चाय-नाश्ते की व्यवस्था भी उपलब्ध कराई। इस छोटी सी उम्र में समाजसेवा की ऐसी सोच रखना वाकई ऐसा आदर्श उदाहरण है, जो कि एक अनोखी मिसाल है। कमाल की बात तो यह है कि उन 13 बच्चों में से एक बच्चा भाभा साइंस सेंटर में सीनियर साइंटिस्ट, एक बच्चा कलेक्टर (मप्र) व एक बच्चा असम में ब्रिगेडियर है। काश! इस तरह की सोच व समझ आज समाज के अन्य बच्चों व युवाओं में हो तो यह तय है कि देश के अनेक अभावग्रस्त व हुनरमंद बच्चों का उज्ज्वल भविष्य निश्चित ही संवरेगा।
17 वर्ष की आयु में नेतृत्व क्षमता का अभूतपूर्व परिचय
‘दूजों के खातिर हर गमों को पीना सीख लिया,
दुखी चेहरों पर देकर मुस्कान हमने जीना सीख लिया।’
बाल्यावस्था में मिले संस्कारों का ही परिणाम था कि महेंद्र सेठ समाज के उपेक्षित, वंचित और गरीबों के लिए हरदम व्यथित रहे। 14 साल की उम्र में गरीब व आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की सहायता और फिर 17 साल की उम्र में, जब वे कक्षा 11वीं में थे, ऐसा उदाहरण पेश किया कि सैकड़ों लोगों की आंखों के तारे बन गए। उस वक्त मुलताई में साफ-सफाई करने वाले कर्मचारी अनेक समस्याओं से जूझ रहे थे और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं से वे वंचित थे। महेंद्रभाई ने इन कर्मचारियों की पीड़ा देखी तो उन्हें न्याय दिलाने का संकल्प लिया और यह काम चुनौतीपूर्ण था और उसके लिए साहस की जरूरत थी। महेंद्रभाई ने अपने साहस का परिचय भी दिया और चुनौती को भी स्वीकार किया। उन्होंने सभी सफाई कर्मचारियों को एकत्र किया और आव्हान किया ‘हौसला रखकर आगे बढ़ना होगा, अधिकारों के लिए लड़ना होगा।’ दो वर्षों तक इन कर्मचारियों के लिए महेंद्रभाई संघर्ष करते रहे। जब फर्स्ट इयर (1984) में पहुंचे तो उन्हें सफाई कर्मचारियों की यूनियन का प्रेसिडेंट नियुक्त किया गया। इन कर्मचारियों को प्रशासन से मिलने वाली हर सुविधाएं उपलब्ध कराईं और उस वक्त जारी सिर पर मैला ढोने की प्रथा बंद कराई। इसके बाद महेंद्रभाई सेठ इन सफाई कर्मचारियों के नेता व मसीहा बन गए। इन कर्मचारियों के आपसी झगड़े हों या कोई विवाद, उन्हें सुलझाने के लिए महेंद्रभाई को बुलाया जाता और वे जो फैसला करते या सलाह देते, उसे सभी मान्य करते।
शुरू किया आदिवासी जिले का पहला अखबार ‘ताप्ती प्रवाह’
महेंद्रभाई की एक विशेषता है, जो बचपन से लेकर आज तक बरकरार है। वे जो भी काम शुरू करते हैं, उसे पूरा ही नहीं, पूरी तरह सफल करके ही दम लेते हैं। डॉ. हरसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (मप्र) से राजनीति व दर्शनशास्त्र से डबल एमए, जर्नलिजम व एस्ट्रोलॉजी में डिप्लोमा प्राप्त कर चुके एवं अन्य विषयों में पारंगत महेंद्रभाई जानते थे कि समाज की समस्याओं के प्रति अखबार ही एक सशक्त माध्यम है। वर्ष 1985 में ‘ताप्ती प्रवाह’ नामक साप्ताहिक अखबार का प्रकाशन शुरू किया। यह अखबार आदिवासी बहुल बैतूल जिले का पहला अखबार था। ताप्ती नदी के तेज प्रवाह की भांति यह समाचारपत्र दिन-ब-दिन उत्तरोत्तर तरक्की करता गया और देखते ही देखते पूरे जिले व प्रदेश में लोकप्रिय, जनप्रिय व सफलता के शिखर पर पहुंच गया। अखबार में छपी हर खबरों का प्रशासन द्वारा संज्ञान लिया जाता और उन समस्याओं का निराकरण किया जाता। ‘ताप्ती प्रवाह’ अखबार के माध्यम से कई बड़े भ्रष्टाचारों का पर्दाफाश किया। इनमें 12 ऐसी खबरें छपीं, जो विधानसभा में तारांकित प्रश्नों में शामिल हुईं। महेंद्रभाई सेठ को बतौर युवा सम्पादक व पत्रकार के रूप में न केवल जिलास्तर, प्रदेशस्तर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान प्राप्त हुई। पहले बैतूल जिला पत्रकार संघ के उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए और तदुपरांत 3 वर्षों तक अखिल भारतीय लघु समाचार पत्र संघ के सहसचिव पद का दायित्व कुशलतापूर्वक सम्भाला। इसी दौरान वे राष्ट्रीय युवक परिषद के तहसील प्रभारी भी रहे। इसी संस्था के बैनरतले उन्होंने एक भव्य रक्तदान शिविर का आयोजन किया। इस शिविर में उस वक्त तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष मायाराम सुरजन, मप्र के वित्त सचिव अस्थाना मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे। करीब 400 से अधिक लोगों ने इस शिविर में स्वैच्छिक रक्तदान किया। इसी दरम्यान केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल के साथ उन्हें इस्लामाबाद जाने का अवसर मिला। 35 सदस्यीय इस प्रतिनिधिमंडल में ‘मुंबई समाचार’, ‘देशबंधु’ व ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ जैसे प्रतिष्ठित व नामी अखबारों के प्रतिनिधि शामिल थे। ‘ताप्ती प्रवाह’ का प्रकाशन सन् 1995 में बंद कर दिया, क्योंकि इस दौरान (1992) उनका परिवार नागपुर (महा.) शिफ्ट हो गया था। मुलताई में रहते हुए 1983 से लेकर 1992 तक हर वर्ष मकर संक्रांति के मौके पर उन्होंने राज्य स्तरीय पतंग स्पर्धा का आयोजन किया और इस आयोजन के माध्यम से पूरे मध्यप्रदेश में पतंगबाजी को बढ़ावा दिया। इस स्पर्धा में 13 जिलों के स्पर्धक शामिल होते थे और यह प्रतियोगिता 7 दिनों तक चलती थी।
अन्य उल्लेखनीय कार्य
‘गागर में सागर’ के सदृश व्यक्तित्व के धनी व अपने आप में एक ‘चलती फिरती लायब्रेरी’ जैसी खूबियों वाले महेंद्रभाई सेठ का जीवन सफर भी काफी विशिष्टाओं भरा रहा है। हरदम वही युवाओं सा जोश और वही स्फूर्ति व ताजगी अपने चेहरे पर लिए वे सदैव अपनी जनसेवा व मानवसेवा में तल्लीन रहे। इस दौरान उन्हें खुद यह पता नहीं चला कि उन्हें कितने लोग अपना अजीज व कितने लोग मसीहा मानने लगे। वे कहते हैं, ‘मैं तो चला था अकेले ही सफर में, लोग जुड़ते गए और कारवां बढ़ते गया।’ विविध क्षेत्रों के साथ ही उन्होंने खेल के प्रति लगाव रखने वाली प्रतिभाओं को भी मंच प्रदान किया। पतंग स्पर्धा के अलावा टेबल टेनिस, फुटबॉल, बैडमिंटन जैसे खेलों को बढ़ावा देने और खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए न केवल जिला स्तरीय बल्कि सम्भागीय स्तर की अनेक प्रतियोगिताएं आयोजित कीं, जिससे अनेक खिलाड़ी उभरकर सामने आए। न केवल सफाई कर्मचारियों के लिए संघर्ष की मशाल प्रज्ज्वलित की, बल्कि भूमिपुत्रों अर्थात् किसानों के अधिकार के लिए भी अपनी आवाज बुलंद की। आदिवासी किसानों को कर्ज आसानी से मिले, अत: उनके पूरे दस्तावेज तैयार किए। उनका यह कार्य देखकर मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल इतने प्रभावित हुए कि, महेंद्रभाई को इस विषय पर सम्बोधित करने के लिए विधानसभा में आमंत्रित किया गया। उस वक्त उन्होंने सदन में 13 मिनट की स्पीच दी। यह कोई साधारण बात नहीं थी कि प्रदेश का सीएम किसी सामान्य नागरिक को उसके कार्यों से प्रभावित होकर प्रदेश के महत्वपूर्ण समझे जाने वाले सदन में बोलने का अवसर प्रदान करें। इस एक उदाहरण से यह अनुमान सहज ढंग से लगाया जा सकता है कि उस वक्त युवा महेंद्र सेठ किस तरह की शख्सियत रहे होंगे? बैतूल जिले में महेंद्रभाई अनेक नामी व प्रतिष्ठित संस्थाओं से संलग्न रहे। 1987 में तहसील के सांसद प्रतिनिधि (तत्कालीन सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री असलम शेर खान), पत्रकार संघ, लायंस क्लब के पदाधिकारी मंदिर के ट्रस्टी जैसे विभिन्न पदों पर वे रहे। विशेष बात यह है कि उक्त सभी कार्य उन्होंने 18 वर्ष से लेकर 26 वर्ष की आयु में किए। आज के युवाओं को उनसे जरूर प्रेरणा लेना चाहिए।
किया नागपुर का रुख और यहीं बस गए
महेंद्रभाई सेठ ने सन् 1992 में पारिवारिक और व्यापारिक आग्रह पर महाराष्ट्र के नागपुर शहर की ओर रुख किया और फिर यहीं के हो लिए। अकेले नागपुर आने के बाद उन्होंने अपनी व्यापारिक बुद्धि लगाई और मस्कासाथ क्षेत्र में खाद्य तेल व शक्कर का थोक व्यापार शुरू किया। यह व्यापार भी चल निकला और दिन-ब-दिन आगे बढ़ता गया। वर्ष 2003 तक यह व्यापार करने के बाद कुछ नया करने का निर्णय लिया। अत्याधुनिक युग के बदलते परिवेश के अनुरूप एवं आइटी फील्ड में रुचि के कारण महेंद्र सेठ ने कमोडिटी कारोबार शुरू करने का निर्णय लिया और तेल व शक्कर का व्यापार बंद करके डिजीटल क्षेत्र में पदार्पण किया। सर्वप्रथम खाद्य तेल, शक्कर, दालों आदि का बाजार भाव, रिसर्च रिपोर्ट व तात्कालिक भाव मोबाइल के माध्यम से व्यापारियों को देने का काम शुरू किया। विशेष बात यह थी कि उस वक्त इस तरह का काम करने वाले पूरे देश में दो ही लोग थे-सीएनबीसी व महेंद्रभाई सेठ। इस कार्य को इतना बेहतर प्रतिसाद मिला कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इनके ग्राहक बन गए। ये सारी सेवाएं सशुल्क दी जाती थीं। वर्ष 2013 में कमोडिटी का व्यापार बंद करके आइटी क्षेत्र की नई टेक्नालॉजी से जुड़ी सेवाएं देना शुरू किया। कई नई वेबसाइट व ऐप का निर्माण किया। इस वक्त ‘बाजार भाव सर्विसेस’, ‘ई-विजीटिंग कार्ड्स’, ‘डिजीटल एड लाइव’ के अलावा 2016 से ‘डिजीटल एड एवं ब्रॉन्डिंग व इमेज प्रमोशन’ का काम शुरू किया, जो इस वक्त भी शुरू है। इसके पूर्व उन्होंने रियल स्टेट सेक्टर में पदार्पण किया, जिसे वे आज बखूबी निभा रहे हैं।
सोशल वर्क में अप्रतिम व उल्लेखनीय कार्य
लगता है महेंद्रभाई सेठ के संस्कारों के साथ ही उनके रक्त में दीन-दुखियों, वंचितों, जरूरतमंदों, संकटग्रस्त व विपदा से जूझ रहे लोगों के प्रति दयाभाव व उनकी मदद करने का जज्बा कूट-कूटकर भरा हुआ है। बिना किसी स्वार्थ और पब्लिसिटी की चाह रखते हुए बचपन से लेकर अब तक उन्होंने भले ही कई व्यवसाय बदले, स्थान बदला, लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वह है समाजसेवा का भाव। वे कहते हैं-
‘जो ऋण है समाज का उसे चुकाना होगा, कुछ तो अपनी कमाई में से बचाना होगा।
जब इनसान का जन्म लिया है इस धरा पर,तो हमें भी इंसानियत का फर्ज निभाना होगा।’
और वाकई महेंद्र सेठ अपने इस फर्ज को एक धर्म की भांति निभा रहे हैं। धन्य हैं उनके माता-पिता जो उन्होंने ऐसे बालक को जन्म दिया, जो आज हजारों-लाखों लोगों की दुआएं कमा रहा है। विगत 21 वर्षों से अर्थात् वर्ष 2002 से वे अपने चार मित्रों के साथ मिलकर मेयो और मेडिकल कॉलेज में भर्ती मरीजों को माह में दो बार नियमित रूप से फलों का वितरण कर रहे हैं। इस कार्य के प्रति वे कहते हैं कि इससे यह भी पता चलता है कि बीमार होने पर कैसे-कैसे मरीजों को अस्पताल की शरण लेना पड़ती है और कैसी-कैसी बीमारियों से इनसान को जूझना पड़ता है। फल वितरण के बहाने कुछ पल के लिए सही, परंतु उनके उदास चेहरे पर खुशी झलक जाती है। पिछले 19 वर्षों से अर्थात् सन 2004 से शहर के विभिन्न अनाथाश्रमों व वृद्धाश्रमों में हर तीन माह में एक बार नियमित रूप से औषधियों का वितरण भी अपने चारों मित्रों के साथ कर रहे हैं तो वहीं वर्ष 2017 से कैंसर पीड़ित व असहाय मरीजों को कीमोथेरेपी की सेवाएं दे रहे हैं। एक कीमोथेरेपी के लिए करीब 30-35 हजार रुपयों का खर्च आता है, जिसे महेंद्रभाई खुद व्यक्तिगत रूप से वहन करते हैं। अब तक 68 मरीजों को वह यह सेवा प्रदान कर चुके हैं। विशेष बात यह है कि उक्त तीनों सेवाओं की उन्होंने कभी पब्लिसिटी नहीं की। 2015 में महेंद्र सेठ नागलवाड़ी अंध विद्यालय से जुड़े। वहां उन्होंने दो कमरों का निर्माण करवाया। नेत्रहीन विद्यार्थी खुद के पैरों पर खड़े हों और स्वावलम्बी बनें, अत: उन्हें संगीत की ओर मोड़ा। गर्व की बात है कि उन नेत्रहीन विद्यार्थियों का आज खुद का आर्केस्ट्रा है और वे उसके माध्यम से अच्छी कमाई भी कर रहे हैं।
‘विदर्भ रत्न डॉट कॉम’ की अभिनव पहल
हमारे समाज में अनेक ऐसी विभूतियां है, जो इस संसार में जन्म लेती हैं और अपनी प्रतिभा के दम पर कुछ ऐसे अनोखे कार्य कर जाती हैं कि लोग हैरत में पड़ जाते हैं और उन्हें सलाम करते हैं, लेकिन अफसोस इस बात का है कि उन्हें एक योग्य प्लेटफार्म नहीं मिल पाता, जिससे वे सामने ही नहीं आ पाते और इस वजह से प्राय: कई लोग गुमनाम ही रहते हैं। ऐसी ही अनेक प्रतिभाएं आज हमारे देश, राज्य व विदर्भ में मौजूद हैं। विदर्भ के ऐसे व्यक्ति, जिन्होंने समाजसेवा, राजनीति, शिक्षण, स्वास्थ्य, एडवेंचर, संगीत, क्रीड़ा व विभिन्न क्षेत्र में कुछ अनोखा कार्य किया है, उन्हें लाखों लोगों से रूबरू कराने के उद्देश्य से महेंद्रभाई ने एक डिजीटल प्लेटफार्म ‘विदर्भ रत्न डॉट कॉम’ 2018 में शुरू किया। इस वक्त लगभग 70 से ज्यादा विभूतियों व अलग-अलग क्षेत्र में कुछ हटकर काम करने वाली हस्तियों का, उनके कार्यों का व जीवनयात्रा का विस्तृत परिचय दिया गया है और आज भी यह कार्य शुरू है।
कोरोना महामारी में पेश की मानवता की मिसाल
देश और दुनिया में कहर बरपाने वाली कोरोना महामारी व उसके चलते लॉकडाउन में असंख्य लोगों के रोजगार छिन गए और खाने-पीने तक के लाले पड़ गए। न केवल इनसान बल्कि मूक प्राणियों को भी दो वक्त का खाना मुश्किल से नसीब हो रहा था तो वहीं दवाइयों, इंजेक्शनों के अभाव में बड़ी संख्या में लोगों की मौतें भी हो रही थीं। ऐसे कठिन दौर में अनेक सामाजिक संस्थाएं व मानवता प्रेमियों ने अपने मदद के हाथ बढ़ाए। महेंद्रभाई सेठ भला कहां पीछे रहते। उन्होंने जैन समाज के सहयोग से 51 हजार फूड पैकेट्स व नागपुर शहर के कई हॉस्पिटल्स में 1350 पीपीई किट का वितरण किया। मुंबई से उत्तरप्रदेश की ओर जाने वाले हजारों गरीबों व मजदूरों को जूतों-चप्पलों, कपड़ों और भोजन का भी वितरण किया। लम्बे समय के लॉकडाउन में प्रसूता महिलाओं की प्रसूति की व्यवस्था भी उन्होंने डॉक्टर्स के सहयोग से उपलब्ध कराई। करीब 35 महिलाओं को यह सुविधा उपलब्ध कराने में वे सफल हुए। उस वक्त हालात ऐसे थे कि डॉक्टर्स व वाहन भी उपलब्ध नहीं हो पाते
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