Dr. Ashish Satav / डॉ.आशीष सातव


कर्मवीर-डॉ.आशीष सातव

M.B.B.S. M.D.

मेलघाट ( जिला अमरावती ) के गहन वन में ३ लाख से अधिक आदिवासियों के लिए चिकित्सा,शिक्षा,कुपोषण,नशा मुक्ति के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर चुके डॉ.आशीष सातव व डॉ.कविता सातव के जीवन के संघर्ष एवं उत्थान की गाथा ने विदर्भ को गौरवान्वित किया है.

डॉ.आशीष सातव कि उत्कृष्ट उपलब्धियां,सादगी पूर्ण जीवन व प्रेरणादायी कार्यशैली युवा वर्ग के लिए अनुकरणीय है.राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर चुके,मधुरभाषी डॉ.आशीष सातव के जीवन का धर्म ,कर्म और उद्देश्य मात्र और मात्र आदिवासियों का उत्थान है.

डॉ.आशीष सातव द्वारा आदिवासी के उत्थान हेतु रोपित " महान’ ट्रस्ट " का पौधा आज विशाल वट वृक्ष का रुप ले चुका है . 

११ वर्ष की उम्र में ही यह तय कर लिया बापू का मार्ग 

विदर्भ के वर्धा में २८ अगस्त १९७१ को जन्मे डॉ.आशीष सातव के पिता श्री प्रतिष्ठित व्यवसायी है .आशीष सातव ने ११ वर्ष की उम्र में ७वी क्लास में थे तब गांधीजी की एक बुक "सत्य के प्रयोग" पढ़ी जिसमे लिखा था की सच्चा भारत गांव में बसता है तभी ही यह तय कर लिया था कि उन्हें बापू के कहे मार्ग पर चलते हुए देहात की जनता की सेवा करने जाना है. उनके पाठ्यपुस्तक में महात्मा गांधी पर जो पाठ पढ़ाया गया था उसमें बापू की इस आशय की अपील पर उन्होंने तभी से चलने की मानसिक तैयारी कर ली थी. डॉ आशीष सातव पर उनके नानाजी वसंतराव बोमबटकर प्रभाव था .नाना बोमबटकरजी महात्मा गाँधी, विनोबा भावे व जयप्रकाश नारायण के साथ काफी नजदीकी से जुड़े हुए थे और इस तरह महात्मा गांधी और संत विनोबा भावे जैसे महान विचारकों के विचारों से आशीष ने अपनी चेतना को समृद्ध किया. सातवीं कक्षा में पढ़ते समय ही उनके मन में यह विचार घर कर गया कि युवकों को ग्रामीण इलाकों में जाकर जनता की सेवा करनी चाहिए.

आदिवासियों के बीच बसने का किया फैसला .

गांधीजी के इसी दिशा निर्देश को अपने जीवन का ध्येय बनाकर उन्होंने मेडिकल मैं अपनी शिक्षा जारी रखने का व्रत लिया और इस तरह १९८८ और १९९७ के बीच नागपुर मेडिकल कॉलेज में शिक्षा ग्रहण करते हुए एम बी बी एस व डॉक्टर ऑफ मेडिसिन ( एम डी) की डिग्री हासिल की. इस बीच वे विदर्भ के आदिवासी बहुल देहाती इलाकों में दौरा भी करते रहे और डॉ प्रकाश आमटे और अभय बंग से प्रेरणा ग्रहण करते हुए विदर्भ के ही देहाती इलाकों में काम करने का संकल्प लिया.पढ़ाई पूरी करते करते उन्हें इस बात का इल्म हुआ कि देहातों से भी ज्यादा बदतर स्थितियां आदिवासी इलाकों में हैं जहां पचासों मील दूर तक कोई स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं है और इन इलाकों में इससे भी बढ़कर अंधविश्वास और कुपोषण का राज्य हर वर्ष सैकड़ों और हजारों बच्चों, महिलाओं और पुरुषों तक की इहलीला समाप्त कर रहा है.डॉक्टर सातव ने अमरावती जिले के धारणी तहसील में जाकर कोरकू आदिवासियों के बीच बसने का फैसला किया.   

१९९८ में झोपड़ी में शुरू किया चिकित्सा केंद्र 
महाराष्ट्र के अमरावती जिले के उत्तरी छोर पर, मध्य प्रदेश की सीमा पर, दक्षिण-पश्चिमी सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला में मेलघाट स्थित है.मेलघाट ४००० वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है.यह नागपुर से २२५ किमी पश्चिम में है.मेलघाट क्षेत्र को १९७४ में एक बाघ आरक्षित घोषित किया गया था.यहाँ के निवासी मुख्य रूप से आदिवासी हैं,जिसमे कोरकू जनजाति (८० फीसदी) है .कोरकू जनजाति घास और लकड़ी से बनी झोपड़ियों के छोटे समूहों में रहती है. ९० % से अधिक आदिवासी किसान या मजदूर हैं और गरीबी रेखा से नीचे, बहुत कठिन जीवन जी रहे हैं,५० % से अधिक निरक्षर हैं .इनकी आबादी २०११ की जनगणना अनुसार मध्य प्रदेश में ७३० ,८४७ महाराष्ट्र में २६४ ,४९२ है यह क्षेत्र बहुत अधिक शिशु मृत्यु दर और कुपोषण के साथ देश में सबसे पिछड़े क्षेत्र में से एक है. मेलघाट अत्यधिक गरीबी, अशिक्षा, उचित स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के लिए जाना जाता है हर १००० में ७० बच्चों की मृत्यु जन्म के साथ ही हो जाती है जिसका मूल कारण माता का कुपोषण है . ६७ % बच्चे कुपोषण का शिकार है यहाँ आसपास कोई अस्पताल नहीं था और १५० किमी दूर क्रिटिकल केयर था.डॉ.आशीष सातव ने १९९८ में एक छोटी झोपड़ी में अपना चिकित्सा केंद्र धारणी-मेलघाट में शुरू किया .

 

डॉ कविता बनीं अभियान की सहभागी 
महात्मा गाँधी आदिवासी अस्पताल धारणी मेलघाट जो एक झोपड़ी में शुरू किया था जहां साधन, सुविधा ,भोजन की तो समस्या थी ही साथ ही आदिवासियों के अंधविश्वास ,भाषा के चलते उन्हें चिकित्सा के लिए सहमत करना अति कठिन था उसी दौरान अमरावती की डॉ कविता का वैवाहिक रिश्ता आया.डॉ.आशीष सातव ने उन्हें अपने पैतृक गांव वर्धा ना बुला कर धारणी मेलघाट बुलाया एक झोपड़ी में स्थित अस्पताल / घर को बता कर अपने संकल्प और संघर्ष से अवगत कराया जो डॉ कविता ने सहर्ष स्वीकारा और ३० नवम्बर १९९८ को डॉ.आशीष व डॉ कविता परिणय सूत्र में बंधे .डॉ .कविता (नेत्र रोग विशेषज्ञ-अप्थाल्मालॉजिस्ट ) हैं.दोनों ने अपने परिवार से आग्रह किया की वे सादगीपूर्ण तरीके से कोर्ट मैरिज करना चाहते है और इस राशि से अस्पताल बनाना चाहते है .और त्याग के धरातल पर अस्पताल निर्माण शुरू हुआ.

डॉ.आशीष सातव एक मार्मिक संस्मरण बताते हैं कि - डॉ कविता आंखों की सर्जरी यानी शल्य चिकित्सा करती थी लेकिन उन्हें कई दिनों तक उस बियाबान जंगल के आदिवासियों से कोई आंख का ऑपरेशन कराने वाला नहीं मिला.उन्होंने आसपास के गांव का दौरा करने का फैसला किया और वहां एक जटिल जचकी की समस्या सामने आई चूँकि डॉ कविता आंखों की सर्जन थी और उनके पास बच्चे की डिलीवरी हेतु आवश्यक इंस्ट्रूमेंट भी नहीं थे ,पर बच्चे और माँ दोनों की जान तो बचाना था उन्होंने आँखों के ऑपरेशन के इंस्ट्रूमेंट का उपयोग कर बच्चे की डिलीवरी संपन्न की पर दुर्भाग्य से उस माता को कुपोषण के कारण माँ का दूध ही न था . डॉ कविता जो खुद अपने नन्हे बालक को दूध पिला रही थी, ने अपना दूध उस आदिवासी बच्चे की जान बचाने के लिए प्रस्तुत किया और इस तरह उस नवजात शिशु की जान भी बचाई. 

अकेले चले और कारवां बन गया 
डॉ.आशीष सातव उनकी पत्नी डॉक्टर कविता ने मिलकर जो मेहनत की उस से सबसे कठिन मामलों में कुछ व्यक्तियों का इलाज तो हो रहा था और पूरे इलाके से कुपोषण दूर करना फिर भी संभव नहीं था. इसलिए उन्होंने २० अल्प शिक्षित आदिवासी पुरुषों और महिलाओं को सामान्य बीमारियों, यानी मलेरिया, निमोनिया, उदर के विकारों का इलाज करने का प्रशिक्षण दिया. इन २० स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मदद से देखते ही देखते करीब ६० ,००० स्वास्थ्य संबंधित मामलों का इलाज करना संभव हुआ और उस इलाके में बसे १७ गांवों में कुपोषण का स्तर ६४ % तक कम हो गया.इसी के साथ उन्होंने एक और बात पर गौर किया.उन्होंने पाया कि कोरकू आदिवासियों में पौष्टिक आहार का नितांत अभाव था. वहां केवल धान की खेती होती थी. इस समस्या से दो-चार होने के लिए उन्होंने अपने अस्पताल परिसर में १ एकड़ की जगह में साग सब्जियां उगाने की शुरुआत की और आने वाले आदिवासी रोगियों को इलाज के समय इन साग सब्जियों से भोजन करवाया जाने लगा. इससे प्रेरित होकर आसपास के कुछ गांवों में साग सब्जियों का उत्पादन घरेलू बाग बगीचों में करने की योजना बनी और महान ट्रस्ट के प्रयासों से वर्तमान में करीब ५००० परिवारों को साग सब्जियां उगाने के लिए समझाने में वे सफल हुए और इन आदिवासियों के रसोई के आसपास बनाए गए इन बगीचों में पिछले साल कुल ४८००० किलोग्राम साग सब्जियों का उत्पादन हुआ और इससे कुपोषण की स्थिति में बहुत बड़ा अंतर भी नजर आने लगा. यह इलाका अब कुपोषण मुक्त होने की राह पर सुनिश्चित कदमों के साथ आगे बढ़ रहा है.

महान ट्रस्ट 
१९९८में डॉ.आशीष सातव ने महान ट्रस्ट की स्थापना की ताकि मेलघाट के आदिवासियों को कुपोषण व नशे से मुक्त कर बेहतर चिकित्सा सुविधा व शिक्षा दी जा सके.महान ट्रस्ट का एक मात्र लक्ष्य मेलघाट के अंतिम आदिवासी को पूरे समर्पण के साथ सेवा दें.शुरुआती दौर में कोई आर्थिक सहयता किसी से भी नहीं मिली मात्र अपनी निजी बचत से उन्होंने कार्य प्रारम्भ किया .आज गोद लिए गए गांवों में कुपोषण और मृत्यु के कारण ६३ % से अधिक की कमी आई है ,आदिवासी के जीवन में महत्वपूर्ण प्रभाव लाने वाले विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से ५ लाख से अधिक लोगों को लाभ मिला है .साथ ही सरकार की विहीन योजनाओ में महान ट्रस्ट के प्रयसों से अनेक नीतिगत बदलाव भी हुए हैं.
महान  प्रोजेक्ट्स 

  • अस्पताल और क्रिटिकल केयर यूनिट- इलाज के लिए गंभीर रोगियों, प्रमुख सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी ९३ ,४०७ से अधिक रोगियों का इलाज किया.
  • स्थानीय आदिवासी महिलाओं को डॉक्टरों के रूप में प्रशिक्षित किया जाता है जिससे १ ,३४,००० मरीजों का इलाज किया गया.
  • काउंसलर प्रोग्राम- सरकारी अस्पताल चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए आदिवासियों को प्रशिक्षण 
  • ब्लाइंडनेस कंट्रोल प्रोग्राम- आई कैरीफ्रैक्टिव एरर, मोतियाबिंद सर्जरी, ग्लूकोमा आदि पर नियंत्रण 
  • स्पेशलिटी कैंप शिविर का आयोजन जिसमे बाल चिकित्सा, स्त्री रोग, दंत, ईएनटी के २०,८४५ मरीजों का इलाज किया गया. 
  • 'UMANG'-प्रोग्राम के तहत प्रचलित व्यसन से योग, ध्यान के माध्यम से मुक्ति दिलाना ताकि जीवनशैली में बदलाव आ सके और मृत्यु दर को कम किया जा सके. 
  • किचन गार्डन और पोषण फार्म लगाने के लिए से आदिवासियों को प्रोत्साहित करना ताकि कुपोषण का दीर्घकालिक समाधान हो सके अब तक ७५०० किचन गार्डन और पोषण फार्म स्थापित हो चुके है . 
  • सामाजिक-आर्थिक-के जीवन स्तर में सुधार के लिए विभिन्न गतिविधियों द्वारा ग्रामसभा का निर्माण. 

महान  इम्पैक्ट 

  • ५ से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में महत्वपूर्ण कमी करीब ६८ % 
  • २५०० से अधिक गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे का इलाज किया और जीवन रक्षण
  • मातृ मृत्यु दर में ५० % की कमी
  • १६ से ६० वर्ष आयु वर्ग की मृत्यु दर में कमी  ४९ .४ %
  • ३००० से अधिक गंभीर रोगियों का इलाज (हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज, सेरेब्रल मलेरिया, सांप काटने, आदि) और जीवन रक्षण 
  • १०२० से अधिक की प्लास्टिक सर्जरी 
  • ४ लाख मरीजों को काउंसलर द्वारा लाभान्वित किया गया
  • २१ ,३०० रोगियों की नेत्र चिकित्सा व १८०२ का ऑपरेशन
  • २०० अति नशा रोगियों को पूर्णतः नशामुक्ति 
  • विभिन्न दुर्घटना में अति गंभीर रूप से घायल ३० लोगों की जान बचाई

सहयोगी

डॉ.आशीष सातव ने बतया कि महान ट्रस्ट की गतिविधियों में सहयोगी संस्था - बिल एन्ड मेलिंडा  गेट्स  फाउंडेशन USA ,पॉल हमलीन फाउंडेशन UK ,मस्टेक फाउंडेशन मुंबई व विशेष सहयोगी -रमेश भाई कचोलिया ,निमेशभाई शाह ,प्रकाश आप्टे हैं .चिकित्सा सेवा में -डॉ दिलीप गहाणकारी (ऑस्ट्रेलिया ),डॉ शैलेश निश्ड,डॉ परीक्षित,डॉ विजय चांडक ,डॉ मृदुला बापट ,डॉ नितिन वोरखडे ,डॉ अभिषेक वैध,डॉ गोपाल गुर्जर ,डॉ आनंद पाठक ,डॉ संजय देवतले,डॉ निखिल नागपुरकर ,डॉ अजय कुलकर्णी ,डॉ अमोल ,डॉ आरती ,डॉ अभय केलकर . डॉ कोरडे का सहयोग मिलता रहता है .   

१० करोड़ आदिवासियों के उत्थान का भावी लक्ष्य .   

पुरे राष्ट्र में करीब १० करोड़ आदिवासी अभी भी चिकित्सा अभाव व कुपोषण के शिकार है हम "महान ट्रस्ट " के माध्यम से एक- एक कर हर आदिवासी क्षेत्र में मेलघाट मॉडल को क्रियान्वित करना चाहते है ताकि बापू के स्व्प्न को साकार कर सके .इसके लिए हमें शासन ,स्वयंसेवी संस्थाओ एवं दानदाताओ के सहयोग की अपेक्षा है 


संपर्क  Mahatma Gandhi Tribal Hospital, 
Karmagram, Utavali, Tah. : Dharni Dist : Amaravati State : Maharashtra . India - 444 702


How to reach-  Nearest Airport-Nagpur, Indore: Nearby Rail Stations- Badnera, Amravati, Nagpur,

Distance by Road Nagpur-300 Km  Indore -200Km  ,Amravati/Badnera-150 Km


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परिवार माता -श्रीमती कमल सातव ,पिताश्री -रामभाऊ सतव , पत्नी: डॉ कविता ,पुत्र: अथांग
जन्म तिथि 28/08/1971
जन्मस्थल वर्धा
जिला अमरावती
शहर अमरावती
शैक्षिक विस्तार M.B.B.S., M.D.
कॉलेज नागपुर गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज
विवाह तिथि 30 Nov 1998
श्रीमान / श्रीमती डॉ .कविता सातव
प्रेरणा स्त्रोत / आदर्श व्यक्ति महात्मा गांधी, विनोबा भावे ,स्वामी विवेकानंद,डॉ प्रकाश आमटे,नानाजी वसंतराव बोमबटकर
पुरस्कार / उपलब्धियां
  • “Public Health Champion” award by WHO for 'Outstanding Contribution to Public Health in Country' in 2016.
  • REAL Award for 2013 by 'Save The Children', UK.
  • Best Tribal Research Project Award & Young Scientist Award” by Indian Council of Medical Research
  • World CSR Congress conferred 'MAHAN' with a 'Certificate of Merit' in February 2016
  • Americares Foundation’s ‘Spirit of Humanity Award 2015 –National Award for child nutrition.
  • Americares Foundation’s ‘Spirit of Humanity Award 2011 –National Award for child nutrition’.
  • Felicitation by Jagtik Marathi Academy and Shivaji University, Kolhapur.
  • Karmveer Social Citizenction Global Award.
  • 'Central India Doctors award for excellence in Contribution to Social Service' in 2016 by Maharashtra C.M.
  • Jamshetji Tata National Rural Fellowship
  • Dr. Dwarkanath Kotnis National Award
  • Spirit of Mastek Award from Mastek Foundation, Mumbai
  • National Child Health Award for Nutrition by Lifebuoy.
  • Alex Memorial Award.
  • Dr. Vankar award for health and hygiene by the Indian Medical Association, Nagpur.
  • 'Suvarnaratna Award 2015' conferred by 'Saptahik Gramkanya', Pune
वर्ग सामाजिक कार्य
Appreciation
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