
रामटेक गढ़ मंदिर
प्राचीन-पौराणिक,ऐतिहासिक आस्था से समृद्ध तीर्थ क्षेत्र
रामटेक गढ़ मंदिर नागपुर से ५५ कि.मी. की दूरी पर रामटेक (महाराष्ट्र राज्य ) में स्थित मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का अति महत्वपूर्ण तीर्थ धाम है. ऐतिहासिक, पौराणिक महत्व से परिपूर्ण यह वह पावन भूमि है जहां साक्षात् प्रभु श्रीराम के श्री चरण पड़े थे . मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम ,भाई लक्ष्मण व माता जानकी ने वनगमन के दौरान इस जगह पर चार माह व्यतीत किए थे. यानी कि वे यहाँ टिके थे, इसीलिए इस जगह का नाम रामटेक पड़ गया. इसी स्थान पर माता सीता ने पहली रसोई बनाई थी और सभी स्थानीय ऋषियों को भोजन कराया था, इस स्थान का जिक्र पद्मपुराण में भी मिलता है.साथ ही रामटेक ही वह स्थान है जहां पर महाकवि कालिदास ने महाकाव्य मेघदूत की रचना की थी.इतिहास पुराणों व अनेक ग्रंथो में इस तीर्थ का स्पष्ट उल्लेख मिलता है .इस पर्वत पर आज के समय में भी ऐसी कई निशानियां देखने को मिलती हैं, जिसे देखकर स्पष्ट प्रमाण मिलता है की प्रभु श्रीराम के श्री चरण यहाँ पड़े थे .एक छोटी सी पहाड़ी पर बना यह भव्य मंदिर, मंदिर कम किला ज्यादा लगता है अतः इसे गढ़ मंदिर भी कहा जाता है .आज यह एक तीर्थ बन चुका है. लोग दूर-दूर से यहां प्रभु श्रीराम के दर्शन करने आते हैं. त्रेता युग में यहां केवल एक पहाड़ हुआ करता था प्रभु श्रीराम के इस धाम का आधुनिक रूप मराठा काल का है. रघुजी भोसले द्वारा १८ वी सदी में छिंदवाड़ा जिले के देवगढ़ किले पर फतह के उपरांत निर्मित किया गया था.
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रामटेक
रामटेक का प्राचीन कालीन नाम का रामगिरि था .यह महाकवि कालिदास के 'मेघदूत' में वर्णित रामगिरि है. यहाँ विस्तीर्ण पर्वतीय प्रदेश में अनेक छोट-छोटे सरोवर स्थित हैं, जो शायद 'पूर्वमेघ' में उल्लिखित 'जनकतनया स्नान पुण्योदकेषु' में निर्दिष्ट जलाशय हैं. निर्देशांक 21°23′40″N 79°19′35″इ पर स्थित नागपुर से ५५ कि.मी. की दूरी पर महाराष्ट्र स्टेट हाईवे २४९ पर रामटेक ग्राम (महाराष्ट्र राज्य ) मध्यप्रदेश की सीमा के निकट बसा है .मराठी भाषी रामटेक का एवरेज लिटरेसी रेट ७५ % ,व आबादी २५००० के लगभग है .भारत के पूर्व प्रधान मंत्री पी वी नरसिम्हाराव रामटेक लोकसभा क्षेत्र से १९८४ व १९८९ में आम चुनाव लड़ चुके है . रामटेक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS के सर संघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर का जन्म स्थान भी है .यहाँ एक जैन तीर्थ भी है जैन धर्म के १६ वी तीर्थंकर शांतिनाथ प्रभु का भव्य प्रासाद यहाँ स्थित है.१९९३ में जैन आचार्य विद्यासागर जी द्वारा यहाँ भव्य तीर्थ की स्थापना की गई ,पर्यटन के लिए प्रसिद्ध रामटेक में खिंडसी लेक तोतलाडोह डेम आकर्षण का केंद्र है .
इस स्थान से शुरू हुआ था प्रभु श्रीराम और रावण की दुश्मनी का सिलसिला
वाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब प्रभु श्रीराम, भ्राता लक्ष्मण और माता सीता के साथ दंडकारिणी से पंचवटी की ओर बढ़ रहे थे तो अचानक से बारिश का मौसम हो गया. मानसून बारिश के ये ४ महीने प्रभु श्रीराम ने अगस्त्य ऋषि के आश्रम में ही गुज़ारे थे, प्रभु श्रीरामअपने वनवास के दौरान यहां पहुंचे तो उन्होंने अपने आस-पास हड्डियां का ढेर देखा ये सब देखने के बाद उन्होंने अगस्त्य ऋषि से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि ये हड्डियां यहां के योगी ऋषि मुनियों की है उन्होंने बताया कि यज्ञ आदि धर्म कर्म करने में असुर हमेशा विघ्न डालते हैं ये सब जानने के बाद श्रीरामजी ने प्रतिज्ञा ले ली कि मैं यहां के ऋषि मुनियों को असुरों का नाश करके अभय प्रदान करूंगा.कहा जाता है कि श्रीराम का अगस्त्य ऋषि से मिलन होना निश्चित था क्योंकि ऋषि का रावण से एक ऐसा रिश्ता था जिसके बारे में किसी को शायद ही पता हो असल में अगस्तय ऋषि रावण के चचरे भाई थे कहा जाता है कि अगस्त्य ऋषि ने प्रभु श्रीराम से यहां मुलाकात के दौरान उन्हें रावण के राज्य और उसके अत्याचारों के बारे में बताया अगस्त्य ऋषि के पास रहकर अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान लिया इसी स्थान पर प्रभु श्रीराम को अगस्त्य ऋषि से ब्रह्मास्त्र प्राप्त हुआ था, जिसकी मदद से भगवान राम ने रावण का वध किया .इस स्थान पर माता सीता ने वनवास के दौरान अपनी पहली रसोई बनाई थी. इस जगह का वर्णन पद्मपुराण में भी मिलता है पद्मपुराण में एक अध्याय है, जिसे सिंदूरागिरि महात्मय कहा जाता है इस महात्मय में रामटेक का पूरा वर्णन मिलता है.
मंदिर की ज्योति में भगवान राम का अक्स
मंदिर से जुड़ी एक मान्यता के अनुसार मंदिर की ज्योति में भगवान राम का अक्स देखने मिलता है .लोक कथाओं के मुताबिक इस मंदिर के तार एक ऐसे तपस्वी से जुड़ें हैं, जिसका प्रभु श्रीराम से गहरा संबंध माना जाता है कहते हैं प्रभु श्रीराम संबूक नामक एक साध्वी के निर्वाण के लिए यहां आए थे जब वो यहां आए तो साध्वी संबूक ने उनसे तीन वरदान मांग लिए जिसमें से सबसे पहला था कि मेरे शरीर से शिवलिंग बने, दूसरा ये कि आप के यानि श्रीराम के दर्शन से पहले मेरे दर्शन हो और तीसरा कि आप ज्योति के रूप में हमेशा यहां उपस्थित रहे. यहां के लोगों का कहना है कि बारिश के दौरान जब यहां पर बिजली चमकती है तो यहां मंदिर के शिखर पर ज्योति प्रकाशित होती है, जिसे प्रभु श्रीराम का अक्स माना जाता है कहा जाता है प्रभु श्रीराम स्वंय उस ज्योति के रूप में यहां प्रगट होते हैं यहां ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्हें इस पवित्र और चमत्कारी ज्योति के दर्शन हुए हैं परंतु उनका कहना है कि ये ज्योति कब दिखती है इसका कोई निर्धारित समय नहीं है.
महान कवि कालिदासइतिहास
मौर्य, श्रृंग, सातवाहन, क्षत्रप, मुंड के बाद शासन करने वाले वाकाटक वंश ने (इ.स.२७० ते इ.स.५००) विदर्भ पर शासन किया. वाकाटक की दो राजधानियाँ थीं, नंदीवर्धन, प्रवरपुर (आज का मनसर)और वत्सगुल्म उनमें से, नंदीवर्धन (आज का नगरधन) ,वाकाटक की प्राचीन राजधानी रामटेक से ७ किमी दूर थी इसलिए वाकाटक के लिए रामटेक किला एक महत्वपूर्ण किला था. विद्याशक्ति वाकाटक वंश के संस्थापक थे. वे धर्मनिष्ठ और सहिष्णु थे. इस वंश के रुद्रसेन व्दितिय की पत्नी प्रभावती , चंद्रगुप्त मौर्य द्वितीय की बेटी थी जो धार्मिक थी उसने और अपने बेटो के नाम से नरसिंह, वराह, त्रिविक्रम, गुप्ताराम मंदिर बनाए .नरसिंह मंदिर में रखे ब्राह्मी शिलालेख में इसका उल्लेख मिलता है. प्रभावती गुप्त ने रामगिरि की यात्रा की थी. इस तथ्य की जानकारी 'रिद्धपुर' के ताम्रपत्र लेख से भी मिलती है.कवि कालिदास उसी काल में हुए थे.बाद में रघुजी भोसले ने किले और अम्बाला झील के पास के मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया था .रामटेक किला का पूरातत्व विभाग द्वारा जीर्णोद्धार इ.स. २०१२ में किया गया इसके कारण, किला अभी भी अपने पूर्व वैभव के साथ खड़ा है.
इ.स्. ३५० के दौरान यहाँ वाकाटक वंश की यहाँ सत्ता थी कालिदास उसी कल से संबंध रखते है .रामटेक मंदिर के रास्ते में एक और जगह का वर्णन मिलता है, जिसका संबंध महान कवि कालिदास से है. इस जगह को रामगिरि कहा जाता है. माना जाता है कि इसी जगह पर संस्कृत के कवि कालिदास ने अपनी सबसे प्रसिद्ध रचना मेघदूत लिखी थी.अगर आपने मेघदूत पढ़ी हो तो आप देखेंगे कि इसमें रामगिरि का काफी ज़िक्र किया गया है. माना जाता है कि प्राचीन काल का रामगिरि ही आज के समय में रामटेक से जाना जाता है. यहाँ विस्तीर्ण पर्वतीय प्रदेश में अनेक छोट-छोटे सरोवर स्थित हैं, जो शायद 'पूर्वमेघ' में उल्लिखित 'जनकतनया स्नान पुण्योदकेषु' में निर्दिष्ट जलाशय हैं .सन १९७०-१९७१ में रामटेक गड मंदिर परिसर में महाराष्ट्र शासना ने 'कालिदास स्मारक' का निर्माण किया व कविकुलगुरू कालिदास संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना हुई
रामटेक गढ़ मंदिर कि एक झलक
रामटेक किले तक सीधे दो व चार पहिया वाहन जा सकते है. वाहन से उतरने के बाद किले की ओर कदम बढ़ाए बिना, दाईं ओर एक विशाल कुंड है. जिसे सिंदुर बावड़ी के नाम से जाना जाता है क़िले में जाने के रास्ते पर जगह जगह पूजा स्थल, खाने पीने की वस्तुओ की दुकाने हैं. किले का पश्चिमाभिमूख प्रवेश द्वार १२ फीट ऊंचा है.प्रवेश द्वार से अंदर प्रवेश करने पर बाईं ओर महानुभाव संप्रदाय का भोगाराम मंदिर ओर वराह मंदिर है. थोड़ा आगे बढ़ने पर दाईं ओर गाँव जाने के लिए सीढ़ियाँ हैं. किले का दूसरा प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है उसके बाजु में रम्य नर्सरी है.तीसरा दरवाजा दक्षिणाभिमूख है, वहां नगारखाना है. इस प्रवेश द्वार पर चढ़ने के लिए सीढिया है,इस सीढ़ी के साथ ऊपर दरवाजे तक जाते हैं और दरवाजे को बाईं ओर किले का बुर्ज हैं इस बुर्ज पर एक झंडा लगा हुआ है, यह किले का सबसे ऊंचा हिस्सा है और पूरे किले और नीचे रामटेक गांव का मनोरम दृश्य द्रस्तिगत होता है साथ ही यहाँ से नगरधन के किले को भी देखा जा सकता है
रामटेक किले के निर्माण में रेत सीमेंट का प्रयोग नहीं किया गया है. इसे पत्थरों से बनाया गया है. एक के ऊपर एक पत्थर रखकर इस मंदिर को बनाया गया है.सदियां बीत गई हैं लेकिन इस किले का एक भी पत्थर टस से मस नहीं हुआ..किले के तीसरे प्रवेश द्वार के ठीक बाहर एक तोप है. प्रवेश द्वार के अंदर मंदिर परिसर है. इस संकुल में प्रवेश करने के लिए गोपूरा से होकर गुजरना पड़ता है जो एक हेमाडपंथी शिल्प है. मंदिर के अंदर आने पर बाईं ओर, दशरथ मंदिर है इसके व्दारपट्टी पर मूर्तियां उत्कीर्ण की गयी है .दशरथ मंदिर के पीछे एक बड़ा बंधा हुआ तालाब है. इस तालाब पर एक घुमटी है .तालाब में जाने के लिए दो साइड सीढ़िया हैं. कहा जाता है कि साल भर इस तालाब के पानी का स्तर एक ही समान रहता है.इस तालाब में जल कभी कम या कभी ज्यादा नहीं होता. इसमें जल स्तर हमेशा ही सामान्य बना रहता है. घुमटी के निचे की बाजू में दीवार पर गंडभेरुंड उत्कीर्ण की गयी है .तालाब के पीछे एक छोटा सा दरवाजा है. इस दरवाजे को छोड़ने के बाद, एक चाबी की आकृति का एक सुंदर कुआं है. कुएँ के बायीं ओर सीढ़ियों से रामटेक गाँव में जाता है.
इसे देखने के बाद, मंदिर परिसर में वापस आने वाला पहले लक्ष्मण मंदिर और इसके पीछे प्रभु श्री राम का मंदिर है. इन दोनों मंदिरों में, नागपुर के भोसले शासको द्वारा उपयोग किए जाने वाले हथियारों को अलमारी में रखा गया है. प्रभु श्री राम मंदिर के पीछे, लक्ष्मी नारायण का मंदिर है. इस मंदिर के छत से रामटेक गांव और सुदूर तक का क्षेत्र दिखाई देता है.किले के निचले छोर पर एक और तटबंध है, जो कालिदास स्मारक से शुरू होकर वराह मंदिर के पीछे पूरे किले की परिक्रमा करते हुए टेलीफोन टॉवर तक फैला हुआ है.टेलीफोन टॉवर वाली पहाड़ी को रामटेक से एक छोटे से खंड द्वारा अलग है. इस पर्वत तक पहुँचने के लिए, इस पहाड़ी पर जाने के लिए रामटेक के पास पार्किंग स्थल के पास आकर सड़क पार कर रामटेक की विरुध्द दिशा में एक पगडण्डी है जिससे किले पर मात्र १० मिनिट में पंहुचा जा सकता है .यहाँ किले के अवशेष देखे जा सकते हैं. उन्हें देख कर पुनः पार्किंग स्थल के पास आना चाहिए.यहां पर कालीदासा का स्मारक है, जिसे देखने के बाद हमारा किला दर्शन पूर्ण हो जाता है.
रामटेक गढ़ मंदिर १५२ मीटर ऊपर पहाड़ी पर स्थित है चौदहवीं शताब्दी के कई मंदिर हैं. पहाड़ी चारों तरफ से किले में घिरी हुई है और इसके चार द्वार हैं, क्रमशः, वराह, भैरव, सिंगापुर और गोकुल. परिसर में दशरथ और वशिष्ठ मुनि के मंदिर हैं, उसके बाद प्रभुश्री राम-सीता का मंदिर है, लेकिन भक्त धुमेश्वर महादेव के दर्शन के बाद प्रभुश्री राम के मंदिर जाते हैं. प्रभुश्री राम-सीता की स्याह पाषाण से निर्मित मनमोहक प्रतिमा वनवासी परिवेश में हैं. मंदिर के सामने भ्राता लक्ष्मण का मंदिर है,और गोकुल दरवाजा और श्री लक्ष्मण मंदिर पर नक्काशी विशेष रूप से दर्शनीय है. इसके अलावा, कुछ अन्य मंदिर भी परिसर में हैं.
मंदिर के सामने एक कुंड है, जिसे सीता स्नान के नाम से जाना जाता है. यहां रामनवमी और त्रिपुरी पूर्णिमा के दिन विशाल मेला लगता है,भरी संख्या में भक्तगण इस दिन आते है .पहाड़ी के आधार पर एक प्राचीन कलंकी मंदिर और मध्यकालीन शैली में निर्मित कुछ जैन मंदिर भी हैं. रामटेक में दो उद्यान माणिकताल और मथुरासागर,और दो झीलें हैं जिनमें से अंबाला झील सबसे बड़ी है. झील के किनारे पर कई आधुनिक मंदिर बने हैं, और सुबह सूरज इन मंदिरों पर चमकता है और तालाबों और मंदिरों का समग्र दृश्य बहुत आकर्षक हो जाता है.
इन मंदिरों में एक अप्रतिम सूर्य मंदिर भी है.अम्बाला झील पर कुल आठ घाटों का निर्माण किया गया है और उन्हें अष्ट-तीर्थ नाम दिया गया है. १८६७ में नगरपालिका की स्थापना की गई थी. तीर्थयात्रा के अलावा, निकटवर्ती मैंगनीज खानों के लिए भी रामटेक का विशेष है. यहां के पान प्रसिद्ध हैं और इन पान के पत्ते की पुणे-मुंबई में निर्यात किया जाता है.नयनरम्य सृष्टीसौंदर्य को देखकर कविश्रेष्ठ कालीदास को मेघदूत जैसी खुशबू मिली, और कवि अनिल ने यहां त्रिविक्रम वामन मंदिर के दर्शन करने पर "भगवन्नामूर्ति हेखंडकाव्य" लिखा.
यात्रा व जत्रा
रामटेक में दो यात्रा आयोजित होती है .पहली त्रिपुरी पूर्णिमा मेला व दुसरी रामनवमी को १२ वी सदी से यह यात्रा हो रही है एसा उल्लेख "लीळा चरित्र ग्रंथ" में वर्णित है .श्री राम मंदिर में त्रिपूर प्रज्वलित करने की शुरुवात त्रिपुरासुर राक्षस का भगवान शिव द्वारा संहार की कथा से सम्बद्ध है.
लगभग ७०० साल पूर्व श्री चक्रधर स्वामी रामटेक आये थे
महानुभाव पंथ हिन्दुओं का एक सम्प्रदाय है जिसका प्रवर्तन १२६७ ई. में श्री चक्रधर स्वामी ने किया था,उन्हें परमेश्वर अवतार माना जाता है. उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों पर प्रहार किया.अन्धविश्वास के प्रति जन चेतना जाग्रत की. श्रीचक्रधर स्वामी ने हिन्दुओं की जाति-व्यवस्था और अर्थहीन परम्पराओं का कड़ा विरोध किया था. उन्होने स्त्री-पुरुष की भक्ति समानता का प्रचार किया.जिवो के उध्दार के उद्देश के लिये उन्होंने राष्ट्र भ्रमण किया ,उसी दौरान वे रामटेक भी आये थे और आत्मज्ञान के लिए यहाँ तपस्या की थी .रामटेक के पास मनसर में उनका देवस्थान है .
आयुर्वेदाचार्य नागार्जुन की कर्मभूमि
रामटेक क्षेत्र में प्राचीन बौद्ध संस्कृति का पता चला है. माना गया है कि मनसर में एक महाविहार था. यह आयुर्वेदाचार्य नागार्जुन की कर्मभूमि थी .६०० वर्ष पहले नागार्जुन का जन्म हुआ था. वे आयुर्वेद व रसायन के जनक थे. उन्होंने ही महायान पंथ की स्थापना की थी. नागार्जुन का पालन पोषण बौद्ध भिक्षुओं ने किया. नागार्जुन ने आयुर्वेद और रसायन की पढ़ाई की और रामटेक परिसर में ही स्थायी हो गए थे.
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज (१९०९-१९६८ ) भारत के के एक महान सन्त थे.उन्होंने अपने प्रारंभिक जीवन का अधिकांश समय रामटेक में बिताया था.संत तुकडोजी महाराज ने यहाँ तप साधना कर अद्यात्म की नई ऊंचाई को प्राप्त किया था
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